बालक बलवान बने, बलिष्ठ बने, अच्छा खिलाड़ी बने, उसकी शारीरिक क्षमताओं का विकास हो, ऐसा बालक ही देश और धर्म की रक्षा कर सकेगा. विद्या भारती के सभी विद्यालयों में सभी बालक शारीरिक दृष्टि से विकास करें, यह प्रयास एवं व्यवस्था की जाती है. इसी दृष्टि से कक्षानुसार शारीरिक शिक्षा का पाठ्यक्रम विशेषज्ञों ने बनाया है. शारीरिक शिक्षा का विशेष प्रशिक्षण देने के लिए क्षेत्रशः केंद्र स्थापित किये गए हैं. विद्या भारती राष्ट्रीय खेल-कूद परिषद् का गठन किया जा रहा है|
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योग विद्या भारती की प्राचीन विद्या है. विश्व भर में इसको अपनाया जा रहा है. विद्या भारती का प्रयत्न है कि हमारे सभी बालक-बालिकाएं योगाभ्यासी बनें. योग के अभ्यास से शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास उत्तम रीति से होता है - यह विज्ञान से एवं अनुभव से सिद्ध है. प्रत्येक प्रदेश एवं क्षेत्र में योग शिक्षा केंद्र स्थापित किये हैं. जहाँ प्रयोग एवं आचार्य प्रशिक्षण के कार्यक्रम चलते हैं. एक राष्ट्रीय स्तर पर भी योग शिक्षा संस्थान स्थापित करने की योजना विचाराधीन है|
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बालक देश के भावी कर्णधार हैं. उनके चरित्र बल पर ही देश कि प्रतिष्ठा एवं विकास आधारित है. अतः नैतिकता, राष्ट्रभक्ति आदि मूल्यों की शिक्षा और जीवन के आध्यात्मिक दृष्टिकोण का विकास करने हेतु विद्या भारती ने यह पाठ्यक्रम बनाया है. यह समस्त शिक्षा प्रक्रिया का आधार विषय है. भारतीय संस्कृति, धर्म एवं जीवनादर्शों के अनुरूप बालकों के चरित्र का निर्माण करना विद्या भारती की शिक्षा प्रणाली का मुख्य लक्ष्य है.
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संस्कृत हिन्दी भाषा की ही नहीं विश्व कि अधिकांश भाषाओँ की जननी है. संस्कृत साहित्य में भारतीय संस्कृति एवं भारत के प्राचीन ज्ञान-विज्ञान की निधि भरी पड़ी है. संस्कृत भाषा के ज्ञान के बिना उससे हमारे छात्र अपरिचित रहेंगे. संस्कृत भारत की राष्ट्रीय एकता का सूत्र भी है. विद्या भारती ने इसी कारण संस्कृत भाषा के शिक्षण को अपने विद्यालय में महत्वपूर्ण स्थान दिया है. विद्या भारती संस्कृत विभाग कुरुक्षेत्र में स्थित है. इस विभाग ने सम्भाषण पद्धति के आधार पर "देववाणी संस्कृतम" नाम से पुस्तकों का प्रकाशन भी किया है. संस्कृत के आचार्यों का प्रशिक्षण कार्यक्रम भी इस विभाग के द्वारा संचालित होता है|
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संगीत वह कला है जो प्राणी के हृदय के अंतरतम तारों को झंकृत कर देती है. उदात्त भावनाओं के जागरण एवं संस्कार प्रक्रिया के माध्यम के रूप में संगीत का शिक्षण विद्या भारती के सभी विद्यालयों में सारे देश में चलता है. उच्च स्तर के गीत कैसेट तैयार कराए गए हैं. राष्ट्र भक्ति के गीतों का स्वर पूरे भारत में गूंजता है. जन्मदिवस के उत्सव हेतु गीत-कैसेट तैयार कराया है जो घर-घर में बजता है. संगीत शिक्षण का कक्षानुसार पाठ्यक्रम निर्धारित है. सभी भारतीय भाषाओँ में गीत छात्रों में प्रचलित हैं. भाषायें भिन्न हैं किन्तु भाव एक हैं. यह अनुभूति होती है |
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इसके अंतर्गत तीन कार्यक्रम संचालित होते हैं.-
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विद्या भारती ने प.पू. डॉ. हेडगेवार के जन्म शताब्दी वर्ष 1988-89 से अखिल भारतीय खेलकूद समारोह का आयोजन प्रारम्भ किया है. इस समारोह में बाल, किशोर, तरुण अर्थात कक्षा अष्टम तक, कक्षा दशम तक, कक्षा द्वादश तक के छात्र-छात्राएँ अलग-अलग समूहों में भाग लेते हैं. कबड्डी, खो-खो, कुश्ती, जूडो, वालीबाल आदि खेलकूद (एथलेटिक्स) के विषय रहते हैं. प्रत्येक खिलाड़ी अधिक से अधिक तीन खेलों में भाग ले सकता है. यह खेलकूद कार्यक्रम विद्यालय स्तर से प्रारम्भ होकर जिला, संभाग, प्रदेश, क्षेत्र एवं अंत में अखिल भारतीय स्तर तक संपन्न होता है. क्षेत्र में विभिन्न खेलों में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले खिलाड़ी छात्र-छात्राएँ ही अखिल भारतीय स्तर पर भाग ले सकते हैं |
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भारत में सामान्यता प्राथमिक विद्यालयों में ६ वर्ष की आयु पूर्ण होने पर बालक कक्षा प्रथम में प्रवेश लेकर अपने औपचारिक शिक्षा आरम्भ करता है. 3 वर्ष से 6 वर्ष का उसका समय प्रायः परिवार में ही व्यतीत होता है. प्राचीन काल में भारत में जब परिवार संस्था सांस्कृतिक दृष्टि से सशक्त थी उस समय बालक परिवार के स्नेहपूर्ण वातावरण में रहकर योग्य संस्कार ग्रहण कर विकास करता था. माता ही उसकी प्रथम शिक्षिका होती थी. किन्तु आधुनिक काल में औद्योगिक विकास एवं पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव विशेष रूप से नगरों में, परिवारों पर भी हुआ और इसके परिणामस्वरूप 2 वर्ष का होते ही बालक को स्कूल भेजने की आवश्यकता अनुभव होने लगी. नगरों में इस आयु वर्ग के बच्चों के लिए "मोंटेसरी", "किंडरगार्टन" या नर्सरी स्कूलों के नाम पर विद्यालयों की संख्या बढ़ने लगी. नगरों एवं महानगरों के गली-गली में ये विद्यालय खुल गए और संचालकों के लिए व्यवसाय के रूप में अच्छे धनार्जन करने के साधन बन गए.
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आज विश्व में पर्यावरण प्रदूषण के कारण मानव समाज में भारी चिंता व्याप्त है. सभी देश इस प्रदूषण को रोकने के लिए प्रयत्नशील हैं. विद्या भारती ने भी अपने विद्यालयों में छात्रों द्वारा पर्यावरण शुद्धि हेतु वृक्षारोपण अभियान प्रारंभ किया है. छात्रों, आचार्यों एवं अभिभावकों में इस अभियान के कारण पर्यावरण के प्रति चेतना एवं प्रकृति के प्रति प्रेम का जागरण हो रहा है. उत्तर प्रदेश एवं महाकौशल प्रान्त में इस दिशा में योजनाबद्ध प्रयास हो रहा है. छात्रों द्वारा लाखों की संख्या में वृक्षारोपण प्रतिवर्ष किया जा रहा है. आशा है अन्य प्रदेशों में भी इस दृष्टि से अपेक्षित योजना बनाकर कार्य प्रारंभ हो जायेगा.
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आचार्यों द्वारा परिवारों में जाकर अभिभावकों से संपर्क स्थापित करना विद्या भारती के विद्यालयों के शिक्षण एवं संस्कार प्रक्रिया का अंग माना जाता है. बालकों को अपनी संस्कृति, धर्म एवं सामाजिक चेतना के जो संस्कार विद्यालय में प्राप्त हो रहे हैं वे उन्हें परिवारों में भी मिलें तभी उनके जीवन का सही विकास संभव होता है. आचार्यों एवं अभिभावकों के निरंतर एवं सजीव संपर्क के कारण परिवारों में संस्कारक्षम वातावरण निर्मित करने में सफलता प्राप्त की है. पुण्यभूमि भारत, श्रीराम एवं अन्य महापुरुषों के चित्र, हिन्दू तिथि-पंचांग आदि लाखों के संख्या में परिवारों में पहुंचे हैं |
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अनेक प्रान्तों में विद्या भारती का कार्य कई वर्षों से चलने के कारण अपने विद्यालयों में पढ़े हुए छात्र बड़ी संख्या में समाज में प्रतिष्ठित हो चुके हैं. इन पूर्व छात्रों से सतत संपर्क बना रहे, इस उद्देश्य से सभी विद्यालयों में एवं प्रांतीय स्तर पर "पूर्व छात्र परिषदों" का संगठन सक्रिय है. इससे उनके संस्कारों का तो पुनर्जागरण होता ही है, साथ ही विद्या भारती के अनेक सेवा प्रकल्पों में उनकी व्यक्तिगत तथा आर्थिक रूप में सक्रिय सहभागिता रहती है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश आदि अनेक प्रदेशों में लाखों की संख्या में पूर्व छात्र सक्रिय हैं.
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भारत में ही नहीं अपितु विश्व में यह सबसे बड़ा गैर सरकारी शैक्षणिक संगठन है. इसका कार्य समाज की सहायता के बल पर प्रगति की ओर अग्रसर हो रहा है. विद्या भारती का कार्य प्रारम्भ से आज कई गुना बढ़ गया है. किन्तु ये सब आंकड़े समाज की शैक्षिक आवश्यकताओं एवं देश की विशालता की तुलना में बहुत कम हैं. विद्या भारती के मानवीय एवं आर्थिक संसाधनों की भी एक सीमा है. वनवासी पिछड़े एवं उपेक्षित क्षेत्रों में विद्यालय निशुल्क चलाने के साथ-साथ छात्रों के भोजन, वस्त्र, पुस्तकों आदि की भी संस्था की ओर से व्यवस्था करनी होती है क्योंकि उन क्षेत्रों में निर्धनता एवं अभावग्रस्त समाज को दो समय पेट भरकर भोजन भी नहीं मिलता. फिर वे अपने बच्चों की शिक्षा के लिए व्यय कहाँ से कर सकते हैं |
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साहित्यिक एवं संस्कृति ज्ञान परीक्षा सम्बन्धी पुस्तकें कुरुक्षेत्र से प्रकाशित होती हैं |
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राष्ट्रीय, क्षेत्रीय एवं प्रदेश स्तर पर विद्या भारती की विद्वत परिषदें गठित हैं. देश के विख्यात शिक्षाविदों एवं शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को इन परिषदों में मानसेवी सदस्यों के रूप में रखा गया है. समय-समय पर आवश्यकतानुसार राष्ट्रीय, क्षेत्रीय एवं प्रदेश स्तर पर गोष्ठियां एवं सम्मेलन आयोजित किये जाते हैं. विद्या भारती को इन विशेषज्ञों एवं विद्वानों का परामर्श एवं मार्गदर्शन प्राप्त होता रहता है जिसके कारण कार्य को गति प्राप्त होती है |
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वर्तमान युग में विज्ञान और तकनीकी का असीमित विकास हुआ है और हो रहा है. शिक्षा एक जीवंत संस्कार प्रक्रिया है जिसमें शिक्षक/आचार्य की भूमिका महत्वपूर्ण है. उसका स्थान यंत्र नहीं ले सकता. फिर भी शिक्षण सहायक सामग्री के रूप में आधुनिक विज्ञान-तकनीकी का उपयोग करने की दिशा में विद्या भारती प्रयत्नशील है. दृश्य-श्रव्य शिक्षण सामग्री के प्रयोग को प्रोत्साहन दिया जा रहा है. श्रव्य-ध्वनि मुद्रिकाएँ तैयार कराई गई हैं. जिनका अनेक विषयों के शिक्षण में उपयोग होता है. एक कैसेट्स एवं फिल्म लाइब्रेरी भी कुरुक्षेत्र में स्थापित की गयी है. इस शिक्षण तकनीकी विभाग के विकास की अनेक योजनायें विचाराधीन हैं.
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विद्या भारती से सम्बद्ध आवासीय विद्यालय इस समय देशभर में चल रहे हैं. लगभग हर प्रान्त में एक आदर्श आवासीय विद्यालय की स्थापना हो चुकी है. इन आवासीय विद्यालयों में बालक चौबीस घंटे रहता है. प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में जागरण से रात्रि दस बजे तक आदर्श दिनचर्या का पालन करते हुए वे शिक्षण और सद्संस्कारों के वातावरण में विकास करते हैं. ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में उच्च स्तर तो प्राप्त करते ही हैं, साथ ही भारतीय संस्कृति, धर्म एवं राष्ट्र भक्ति आदि जीवन मूल्यों से उनका जीवन पुष्पित एवं पल्लवित होकर सद्गुणों से सुगन्धित होता रहता है. दिनभर में इस समय 66 आवासीय विद्यालय हैं.
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आचार्यों के द्वारा शिक्षण में नए-नए प्रयोग एवं शोध (रिसर्च) करने के लिए, जबलपुर, उज्जैन, जयपुर, चंडीगढ़, मेरठ और वाराणसी में शोध केंद्र खोले गए हैं. भारतीय शिक्षा शोध संस्थान, लखनऊ में स्थित है. जहाँ से "भारतीय शिक्षा शोध पत्रिका" का प्रकाशन नियमित रूप से होता है. यह पत्रिका विशेष रूप से आचार्यों के लिए प्रेरणादायक एवं लाभप्रद है. शोध कार्य का मुख्य क्षेत्र शिक्षण पद्धति, भारतीय शिक्षा मनोविज्ञान, अभिवृत्तियों का मापन, परीक्षण एवं उपलब्धियों का मूल्यांकन आदि करना है.
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