शिशु वाटिका (पूर्व प्राथमिक शिक्षा)


भारत में सामान्यता प्राथमिक विद्यालयों में ६ वर्ष की आयु पूर्ण होने पर बालक कक्षा प्रथम में प्रवेश लेकर अपने औपचारिक शिक्षा आरम्भ करता है. 3 वर्ष से 6 वर्ष का उसका समय प्रायः परिवार में ही व्यतीत होता है. प्राचीन काल में भारत में जब परिवार संस्था सांस्कृतिक दृष्टि से सशक्त थी उस समय बालक परिवार के स्नेहपूर्ण वातावरण में रहकर योग्य संस्कार ग्रहण कर विकास करता था. माता ही उसकी प्रथम शिक्षिका होती थी. किन्तु आधुनिक काल में औद्योगिक विकास एवं पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव विशेष रूप से नगरों में, परिवारों पर भी हुआ और इसके परिणामस्वरूप 2 वर्ष का होते ही बालक को स्कूल भेजने की आवश्यकता अनुभव होने लगी. नगरों में इस आयु वर्ग के बच्चों के लिए "मोंटेसरी", "किंडरगार्टन" या नर्सरी स्कूलों के नाम पर विद्यालयों की संख्या बढ़ने लगी. नगरों एवं महानगरों के गली-गली में ये विद्यालय खुल गए और संचालकों के लिए व्यवसाय के रूप में अच्छे धनार्जन करने के साधन बन गए.